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नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में लक्षण मुक्त करने के लिए प्रेडनिसोलोन एक मानक उपचार है अधिकांश बच्चों पर इस दवा का अनुकूल प्रभाव पड़ता है। 1 से 4 हते में सूजन और पेशाब में प्रोटीन दोनों गायब हो जाते हैं। पेशाब जब प्रोटीन से मुक्त हो जाये तो उस स्थिति को रेमिषन कहते हैं।
बच्चों का एक छोटा समूह जिन पर स्टेरॉयड चिकित्सा का अनुकूल प्रभाव नहीं हो पाता, उनकी पेशाब में प्रोटीन की मात्रा लगातार बढ़ती रहती है। ऐसे में किडनी की आगे की जाँच की आवश्यकता होती है जैसे किडनी की बायोप्सी उन्हें लीवामिजोल, साइक्लोफॉस्फेमाइड, साइक्लोस्पेरिन, टेक्रोलीमस, माइकोफिनाइलेट आदि वैकल्पिक दवा दी जाती है। स्टेरॉयड के साथ-साथ वैकल्पिक दवा भी दी जाती है। जब स्टेरॉयड की मात्रा कम कर दी जाती है तो ये दवा रेमिषन को बनाये रखने में सहायक होती है।
प्रेडनीसोलोन नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के उपचार की प्रमुख दवा है, लेकिन इस दवा के कुछ दुष्प्रभाव भी हैं इन दुष्प्रभावों को काम करने के लिए इस दवा का सेवन डॉक्टर की सलाह और देखरेख में ही करना उचित है।
कम समय में दिखने वाले कुप्रभाव / विपरीत असर
अधिक भूख लगना, वजन बढ़ जाना, एसीडीटी होना, (पेट व छाती में जलन होना), स्वभाव में चिड़चिड़ापन होना, संक्रमण होने की संभावना बढ़ना, खून का दबाव बढ़ना और शरीर में रोयें बढ़ना इत्यादि ।
लम्बे समय बाद दिखने वाले विपरीत असर / कुप्रभाव
बच्चों का विकास कम होना (लम्बाई कम बढ़ना) हड्डियों का कमजोर होना, चमड़ी खींचने से जांघ और पेट के नीचे के भाग में गुलाबी लकीरें पड़ना, मोतियाबिंद (Cataract) होने का भय होना इत्यादि ।
हाँ। सामान्यतः जब यह दवाई ज्यादा मात्रा में लम्बे समय तक ली जाये, तब दवाई का विपरीत असर होने का अधिक भय रहता है। डॉक्टर की सलाह के अनुसार उचित मात्रा में और कम समय के लिए दवा के सेवन से दवाई का विपरीत असर कम और थोड़े समय के लिए ही होता है इस दवाई का सेवन डॉक्टर की देखरेख में किया जाता है, तब गंभीर एवं विपरीत असर का प्रारंभ में ही निदान हो जाने के कारण तुरन्त ही उपचार में उचित परिवर्तन द्वारा उसे रोका या कम किया जा सकता है। अनुपचारित रोग के कारण कई जटिलतायें हो सकती है। जैसे संक्रमण का खतरा, हाइपोवोलीमिया, थ्रोम्बोएम्बलजिम (जिसमें खून का थक्का, रक्त वाहिकाओं में बाधा डालकर स्ट्रोक, दिल का दौरा और फेफड़ों की बीमारी का कारण बनता हैं), लिपिड की असमान्यता, कुपोषण और एनीमिया । अनुपचारित नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के कारण संक्रमण से अक्सर कई बच्चों की मृत्यु हो जाती है। बचपन में नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के लिए कोर्टिकोस्टेराइड के उपयोग के कारण अब मृत्यु दर घटकर 3% हो गयी है। फिर भी रोग के कारण होनेवाली तकलीफें और खतरों के मुकाबले दवाई का विपरीत असर कम हानिकारक है। इसलिए ज्यादा फायदे के लिए थोड़े विपरीत असर को स्वीकार करने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं हैं।
प्रेडनीसोलोन के सेवन करने से भूख बढ़ती है। अधिक खाने से शरीर में चर्बी जमा होने लगती है, जिसके कारण तीन-चार सप्ताह में फिर से सूजन आ गई है ऐसा लगने लगता है।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में उपयोग की जानेवाली अन्य दवाओं में लीवामिजोल', 'मिथाइल प्रेडनीसोलोन', 'साइक्लास्पोरिन, एम. एम. एफ (M.M.F.) इत्यादि दवाईयाँ हैं ।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में किडनी बायोप्सी की जरूरी निम्नलिखित परिस्थितियों में पड़ती है :
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में रोग बढ़ने के कारण सूजन सामान्य रूप से आँखों के नीचे और चेहरे पर दिखाई देती है, जो सुबह ज्यादा और शाम को कम हो जाती है। इसके साथ-साथ पैरों में भी सूजन हो सकती है। दवाई लेने से अक्सर चेहरे, कंधे और पेट पर चर्बी जमा होती है, जिससे वहाँ सूजन जैसा दिखने लगता है इस सूजन का असर पूरे दिन के दौरान समान मात्रा में दिखाई देता है । आँखों और पैरों पर सूजन का न होना और चेहरे की सूजन सुबह ज्यादा और शाम को कम न होना, ये लक्षण सूजन नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के कारण नहीं है, यह दर्शाते हैं।
मरीज के लिए कौन सा उपचार उचित रहेगा यह निश्चित करने के लिए सूजन होने एवं सूजन जैसे लगने के बीच का अंतर जानना जरूरी है।
सेकेन्डरी नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के अंर्तनिहित कारणों जैसे- डायाबिटीक किडनी डिजीज, लूपस किडनी डिजीज, एमेलॉयडोसिस आदि का सावधानीपूर्वक उपचार करना महत्वपूर्ण है नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम को नियंत्रित करने के लिए इन विकारों का उपचार आवश्यक है।
सामान्य सलाह
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम एक ऐसी बीमारी है जो कई वर्षो तक रहती है । मरीज और उसके परिवार वालों (परिजनों) को इस बीमारी की प्रकृति और उसकी रोकथाम के लिए किया जाने वाला इलाज और उसके दुष्प्रभाव, संक्रमण की रोकथाम और जल्दी उपचार के लाभ के बारे में उचित एवं पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए । रिलैप्स के दौरान जब शरीर में सूजन हो तब मरीज को अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है। इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है की बीमारी के दौरान मरीज से सामान्य बालक जैसा ही व्यवहार करना चाहिए।
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